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हास्य-व्यंग्य >> ईश्वर भी परेशान है

ईश्वर भी परेशान है

विष्णु नागर

प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2013
पृष्ठ :215
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7975
आईएसबीएन :9788126724284

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सामाजिक घटनाओं या प्रसंगों पर लेखन की चुटीली टिप्पणियाँ।

Ishwar Bhi Pareshan Hai by Vishu Nagar

‘ईश्वर भी परेशान है’ विष्णु नागर की व्यंग्यधर्मिता का रोचक उदाहरण हैं। समकालीन हिन्दी व्यंग्य की गहमागहमी में उनकी शैली अलग से पहचानी जाती है। सामाजिक परिवर्तन के भीतर सक्रिय अन्तर्विरोधों की पहचान, राजनीतिक महत्त्वाकांक्षाओं के मलिन मुख और निजी जीवन में नैतिकता के चक्रव्यूह आदि को बूझने में विष्णु नागर का जवाब नहीं। यही वजह है कि वे कम शब्दों में प्रभावपूर्ण ढंग से विसंगतियों पर प्रहार करते हैं।

विष्णु नागर के इस व्यंग्य संग्रह की एक और विशेषता पाठक का ध्यान खींचती है। वह है, सामाजिक घटनाओं या प्रसंगों पर लेखन की चुटीली टिप्पणियाँ। लोकतंत्र की लीला में प्रतिक्षण ऐसे कार्य होते हैं और दिखते हैं जो विडम्बनाओं से भरे होते हैं। इन कार्यों में छिपे मन्तव्यों पर उँगली टिकाते हुए लेखक ने उन्हें उजागर किया है। ‘मतदाता उछालो मत!’ में विष्णु नागर लिखते हैं कि ‘हे बेटा, आज अकड़ लो!... कल हमारे द्वारे पर कहते हुए आओगे, गिड़गिड़ाओगे, तब तुम्हें पता चलेगा कि तुम क्या हो और हम क्या हैं।... तब तुम्हें पता चलेगा कि हम किसके थे, किसके हैं और किसके रहेंगे।’

पुरानी उक्ति हैं कि कठिन बात सरलता से कह जाना मुश्किल काम है। विष्णु नागर ने अपनी व्यंजनापूर्ण भाषा से यही काम किया है।


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